छोटे बच्‍चों को निमोनिया से बचाने विभ‍िन्‍न सेक्‍टरों ने मिलाया हाथ

छोटे बच्‍चों को निमोनिया से बचाने विभ‍िन्‍न सेक्‍टरों ने मिलाया हाथ

सेहतराग टीम

महिलाओं, छोटे बच्‍चों, नवजात शिशुओं शिशुओं से जुड़ी बीमारियां पूरी दुनिया के लिए चिंता का कारण बनी हुई हैं। ऐसे में पार्टनरशिप फॉर मैटरनल, न्‍यू बॉर्न एंड चाइल्‍ड हेल्‍थ ने केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय के साथ मिलकर पूरी दुनिया के साझीदारों को एक साथ लाने की कोशिश की है और इसी के तहत दिल्‍ली में आज से लेकर 13 दिसंबर तक पार्टनर्स फोरम का आयोजन किया जा रहा है जिसमें पूरी दुनिया से 1200 साझीदार हिस्‍सा ले रहे हैं। ये सभी महिलाओं, बच्‍चों और किशोरों की सेहत को बेहतर बनाने के लिए अपने अनुभवों को साझा करेंगे।

पार्टनर्स फोरम के इसी आधिकारिक कार्यक्रम के तहत आज विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन, यूनिसेफ, यूएसएआईडी, सीएचएआई और सेव द चिल्‍ड्रन्‍स जैसी संस्‍थाओं ने मल्‍टी-सेक्‍टोरल पार्टनरशिप फॉर चाइल्‍ड हेल्‍थ: एक्‍सलेटरिंग प्रोग्रेस टूवाडर्स एसडीजी’  पर साझा रूप से एक आधिकारिक साइड इवेंट का आयोजन किया। इस साइड इवेंट का मुख्‍य लक्ष्‍य छोटे और बीमार नवजातों व बच्‍चों में निमोनिया के खतरे को लेकर राजनीतिक आवेग को बढ़ाना था। इसके अलावा निमोमिया के कारण बच्‍चों की मौतों को रोकने के लिए विभिन्‍न सेक्‍टरों की साझेदारी को बेहतर बनाना है।

कदम उठाने वाले अलग-अलग लोगों और देशों के बीच जानकारी के आदान-प्रदान के लिए एक मंच तैयार करना भी इस इवेंट का उद्देश्‍य था। इस इवेंट ने बच्‍चों की मौतों को रोकने के लिये कई साझीदारों को अपनी प्रतिबद्धता पूरी करने और मल्‍टी सेक्‍टोरल पार्टनरशिप को सपोर्ट करने का मौका दिया है।

भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्‍चों में होने वाली मौतों की तीन प्रमुख वजह हैं: प्रीमैच्‍योरिटी और जन्‍म के समय कम वजन, निमोनिया और डायरिया। उन मौतों में एक तिहाई की वजह कुपोषण भी है। भारत में किसी भी अन्‍य देश की तुलना में पांच साल से कम उम्र के बच्‍चों में इसकी वजह से सबसे ज्‍यादा मौतें होती हैं। हर साल भारत में दो करोड़ 70 लाख बच्‍चे पैदा होते हैं, लगभग 13 प्रतिशत (35 लाख) बच्‍चे समय से पूर्व पैदा होते हैं और 28 प्रतिशत (76 लाख) का वजन जन्‍म के समय कम होता है, इससे उनमें जन्‍म लेने के साथ मौत का खतरा बढ़ जाता है।

मौजूदा समय में नवजात बच्‍चों पर पूरा फोकस होता है लेकिन जानलेवा निमोनिया को भुला दिया गया है। जॉन हॉपकिंस यूनिवसिर्टी द्वारा कराए गए एक नए अध्‍ययन और स्‍वयंसेवी समूह, सेव द चिल्‍ड्रन द्वारा वर्तमान स्थिति के आधार पर किए गए आकलन के अनुसार, पांच साल से कम उम्र के 10 लाख 8 हजार बच्‍चे इस दशक के अंत तक निमोनिया की वजह से मौत के शिकार होंगे। हर चार मिनट में निमोनिया की वजह से 1 एक बच्‍चे की मौत हो रही है। विकासशील देशों में जहां बच्‍चे निमोनिया के शिकार हो रहे हैं,  उनमें 70 प्रतिशत की जान एंटीबायोटिक्‍स के इलाज से बचाई जा सकती है। इस पूरे इलाज में महज 0.4 डॉलर यानी करीब 28 रुपये का खर्च आता है।

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